पुणे : “तंत्रज्ञान पर आधारित शिक्षा से नए पाठ्यक्रम उपलब्ध हो रहे है. इसीको बहुविकल्पीय और कौशल शिक्षा की जोड़ देनी चाहिए. नए शिक्षा निति में इसका समावेश किया गया है. मूल्यांकन और पढ़ाने के तरीके में बदलाव करना चाहिए. इ लर्निंग और किताबों को इससे जोड़ना चाहिए. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षकों को सक्षम होना जरुरी है, नई तंत्रज्ञान, कौशल हासिल करना चाहिए. छात्रों को स्वयंपूर्ण होने के लिए मूल्य और पूरक ज्ञान प्रदान करने की आवश्यकता है, ऐसा प्रा. ए.के. बक्षी ने कहा.
सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ इन्स्टिट्यूट्स और नई दिल्ली के सेंटर फॉर एज्युकेशन ग्रोथ अँड रिसर्चच्या (सीईजीआर) की और से  ‘३६० दृष्टीकोन से  प्रभावी तंत्रज्ञान शिक्षा’ (इफेक्टिव्ह टेक एनेबल एज्युकेशन इन 360 डिग्री परस्पेक्टिव्ह) विषय पर आयोजित चर्चासत्र में  प्रा. बक्षी बोल रहे थे. इस वक्त सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ के  वाणिज्य शाखा के अधिष्ठाता प्रा. डॉ. पराग कालकर, प्रसिद्ध कम्प्यूटरतज्ज्ञ डॉ. दीपक शिकारपूर, उत्तरांचल विद्यापीठ के कुलगुरू प्रा. डॉ. देवेंद्र पाठक, सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ इन्स्टिट्यूट के  संस्थापक अध्यक्ष और ‘सीईजीआर’ के  राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रा. डॉ. संजय चोरडिया, ‘सीईजीआर’ के संचालक रविश रोशन, ‘सूर्यदत्ता’  के  समूह संचालक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रा. डॉ. शैलेश कासंडे आदी उपस्थित थे.
डॉ संजय चोरडिया ने कहा, “प्रौद्योगिकी ने शैक्षिक वातावरण को बदल दिया है. डिजिटल शिक्षा शुरू करने में कई समस्या आ रही थी. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के छात्रों के बारे में सोच विचार करना पड़ा.  देशभर से छात्र शिक्षा के लिए पुणे में आते हैं. डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, तकनीकी ज्ञान और शिक्षकों का कौशल, साथ ही छात्रों के तकनीकी कौशल को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. डिजिटल लर्निंग ने हर घटक के लिए कई नए अवसर उपलब्ध कराये हैं. ऑनलाइन शिक्षा की समस्या नौकरी करनेवाले माता-पिता को महसूस हो रही है. अपने बच्चे को  समय नहीं दे पाते. छात्रों, शिक्षकों को ध्यान में रखते हुए एक विशिष्ट प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत है ताकि सभी संस्थान, विश्वविद्यालय और छात्र इसका पालन कर सकें.”

डॉ दीपक शिकारपुर ने कहा, “हमारी संस्कृति बदल रही है. स्वच्छ वातावरण, स्वच्छता अब अनिवार्य है. कोविड ने शिक्षा प्रणाली को बदल दिया है. यह नई चुनौतियों का भी सामना कर रहा है. ऑनलाइन शिक्षा हमें दुनिया के किसी भी वक्ता के साथ बातचीत करने की अनुमति देती है. शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों ने शिक्षा प्रणाली को बदल दिया. स्नातकोत्तर शिक्षा में व्यावहारिक ज्ञान अधिक महत्वपूर्ण है. यह पाठ्यक्रम 50% थेरी और 50% प्रैक्टिकल होना चाहिए. शिक्षा पूरी होने के बाद छात्रों के सामने रोजगार की समस्या खड़ी रहती है. प्रैक्टिकल ज्ञान इस यात्रा को सुखद बना सकता है. साथ ही छात्रों को स्वयं अध्ययन करना चाहिए, ऐसा पाठ्यक्रम बनाया जाना चाहिए. शिक्षकों को भी साल में एक बार इंटर्नशिप करनी चाहिए. उन्हें यह अनुभव होगा कि इंडस्ट्री में कैसे काम किया जाता है.”

प्रा. डॉ पराग कालकर ने कहा, ”छात्रों ने स्वयं अध्ययन के साथ-साथ समूहों में अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. डिजिटल शिक्षा प्रदान करते समय शिक्षक भी तंत्रज्ञान और डिजिटल रूप से साक्षर होने चाहिए. अपनी खुद की सामग्री बनाकर वैश्विक शिक्षक बनने का यह एक अच्छा अवसर है. कोविड ने रातों-रात ऑफलाइन पढ़ाई को ऑनलाइन कर दिया. हालांकि, छात्रों और शिक्षकों के बीच विचारों का आदान-प्रदान नहीं हो पाता है. छात्रों को ऑनलाइन क्लास में रूचि बढ़नी चाहिए.”