पुणे, 14 सितंबर 2023: हिंदी को सम्मान दिलाने के लिए आजादी के बाद सरकार के स्तर पर पहली बार कार्य हुआ है. भाषा को लेकर राजनीति करने वालों के कारण हिंदी दूसरी भाषाओं से समन्वय स्थापित नहीं कर पाई. अब सन 2021 के बाद से हिंदी को लेकर सरकार के स्तर पर प्रयास चल रहे हैं. हिंदी दिवस भी बड़े पैमाने पर मनाया जाने लगा है. यह विचार गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने बालेवाड़ी स्थित श्री शिवछत्रपति स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में आयोजित तृतीय भारतीय राजभाषा सम्मेलन में व्यक्त किए. इस अवसर पर राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश, केंद्रीय राज्य मंत्री भारती पवार, संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष भर्तहरि महताब, राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा, वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष प्रो. गिरीश नाथ झा, राजभाषा विभाग की सचिव अंशुली आर्य, संयुक्त सचिव डॉ. मीनाक्षी जौली भी उपस्थित थीं. कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया. इसके बाद राजभाषा की सचिव अंशुली आर्य ने कार्यक्रम की प्रास्ताविक किया.

हिंदी दिवस हम सभी 14 सितंबर को हर वर्ष लंबे समय तक मना रहे हैं लेकिन आज जो कार्यक्रम अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन तीसरी बार कर रहे हैं. यह नरेंद्र मोदी और अमित शाह के प्रयासों का ही फल है जो आजादी के बाद पहली बार 2021 के बाद बड़े पैमाने पर मनाया जा रहा है और अब हम यह भी कह सकते हैं कि हमने बहुत लंबे समय से इस अवसर को खोया है. अब आजादी के 75 साल पूरे होने वाले थे तब पहला अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन आयोजित किया गया है इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की प्रेरणा है. जिसके कारण हम आज लगातार तीसरी बार अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन कर रहे हैं. इस कार्यक्रम को बढ़ा रहे हैं. आज हिंदी दिवस के अवसर पर मैं आप सभी को बहुत बहुत बधाई देता हूं. साथ ही साथ गृहमंत्रालय के राजभाषा विभाग जिन्होंने अपने अलग-अलग क्रिया कलापों से न सिर्फ राजभाषा बल्कि सभी भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी का सामंजस्य हो सके . उस दृष्टि से बहुत ही परिश्रम किया है और बहुत ही अच्छे परिणाम भी दिए हैं. जिस तरह से यह आयोजन किया गया है.उसके लिए राजभाषा विभाग की सचिव के साथ उनकी पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई देता हूं और उनका आभार व्यक्त करता हूं. हम सब जानते हैं कि यह देश शैक्षणिक, सांस्कृतिक ज्ञान और संस्कारों का देश है. हमारे देश में बहुत सारी भाषाएं बोली जाती है. हमारी हिंदी और भारतीय भाषाओं के बीच में कभी कोई स्पर्धा नहीं रही. सभी भाषाओं में इस देश में साहित्य और ज्ञान की परंपरा रही है और ये सारी भाषाएं बहुत समृद्ध भाषाओं के रुप में अपनी पहचान रखती है. इनके बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी. जब विदेशी शासक आए उस दौरान भी कोई ज्यादा प्रतिद्वंदिता नहीं देखी गई. जब अंग्रेज यहां सत्ता में आए तब भी उन्होंने भी शुरुआत में कोई भाषा नीति नहीं बनाई थी लेकिन 1857 के युद्ध के बाद हमारे देश में 1860 में अनेकों कानून बनाए गए थे. उनमें से एक शिक्षा नीति के रुप में अंग्रेजी का बीज बोने का काम ब्रिटिश गर्वनमेंट ने उस समय किया था और 1860 में ब्रिटिश सरकार ने जो बीज बोया था. उसका दुष्परिणाम हम आज तक झेल रहे हैं और उससे निरंतर प्रभावित भी हो रहे हैं. बीच में उनका यह सोच था कि इस अंग्रेजी भाषा को लाकर इस शासन और सत्ता को ठीक ढंग से चला ले जाएंगे. इसके बाद जब स्वतंत्रता का आंदोलन आया. तब स्वतंत्रता के आंदोलन में हमारे देश के अलग-अलग राज्यों के नेताओं ने इस बात पर विचार किया कि देश में स्वतंत्रता के आंदोलन के व्यापक प्रभाव के लिए हिंदी को हम वैकल्पिक भाषा के रुप में प्रयोग करें. यही वह क्षण था जिसमें ब्रिटिश सरकार ने अपनी फूट डालो और राज करो की दृष्टि से काम करते थे. उन्होंने हमारी भारतीय भाषाओं को हिंदी के खिलाफ इस तरह का माहौल बनाने का प्रयास किया. उन्हें लगा कि स्वतंत्रता का पूरा श्रेय हिंदी को मिल रहा है तो उन्होंने हिंदी के समक्ष उर्दू को खड़ा कर दिया. जिसमें ब्रिटिश के साथ-साथ अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के कुछ विद्वानों सहयोग किया और उन्होंने हिंदी और भारतीय भाषाओं के बीच प्रतिस्पर्धा का बीज बो दिया. जिसे स्वतंत्रता के बाद हम लोगों को समाप्त कर देना था. यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि उस समय में भी हमने संविधान के अनुच्छेद 343 में इस बात को जोड़ दिया कि आजादी के 15 साल के बाद भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता रहेगा. यहां तक कुछ गनीमत थी कि आगे शासन सत्ता सुचारु रुप से चलती रहे इसके लिए उन्होंने प्रावधान किया. आजादी के बाद अंग्रेजी का प्रयोग करने से यह नुकसान हुआ कि हिंदी और भारतीय भाषाओं के बीच जो समन्वय होना चाहिए था वह नहीं हो पाया और राष्ट्रीय भाषा का भी जो व्यवहार था उससे भी हमारी क्षेत्रीय भाषाएं उपेक्षित होती है. यदि हम 15 साल के बाद हम यह बदल देते लेकिन उसके पहले ही राजभाषा का अधिनियम 1963 आया और उसमें यह प्रावधान कर दिया गया कि अभी अंग्रजी उसी तरह काम करती रहेगी. ऐसी सभी राज्य की एसेंबली जिन्होंने हिंदी को राजभाषा के रुप में स्वीकार नहीं किया है उनके यहां से जब तक ऐसा प्रस्ताव नहीं आ जाता है कि अंग्रेजी को हटा दिया जाए और पार्लिया मेंट के दोनों सदनों से यह पारित नहीं हो जाता है कि तब तक अंग्रेजी इसी भांति चलती रहेगी. इसे हमारी हिंदी और भारतीय भाषाओं के बीच दूरी बढ़ती गई. उनका जो समन्वय होना चाहिए था वह नहीं हुआ. वे लोग जो उस समय सत्ता में थे या व्यवस्था में थे. उन्होंने अंग्रेजी के प्रयोग को बदस्तूर जारी रखा और परिणाम स्वरुप राजनीति में भी भाषाओं का प्रयोग हुआ. जब प्रदेशों का गठन भाषाओं के आधार पर हुआ तो कुछ राजनैतिक दल और और राजनैतिक नेताओं ने भाषा को भी राजनीति का हथियार बना लिया. शुरु में छोटे मोटे प्रयास हुए होंगे. इस स्थितियों को बदलने की कोशिश हुई होगी लेकिन जैसा संगठित और सामूहिक प्रयास सरकार के स्तर पर होना चाहिए था. फलस्वरुप ऐसे राजनैतिक दल जो भाषा पर राजनीति कर रहे थे जैसे जो लोग धर्म और जाति के नाम पर राजनीति करते हैं. वैसे ही भाषाओं में भी वैमनस्य पैदा किया. जी-20 का आयोजन हमारे यहां हुआ है. उससे पहले गृहमंत्री ने संसदीय राजभाषा समिति के साथ भी बैठक की थी. इस बैठक में पांच प्रण लिए गए थे. कि हमें गुलामी के चिन्हों को मिटाना है. अपनी सांस्कृतिक, अपनी भाषा की अपनी संस्कृति को फिर से अपना गौरव दिलाने के लिए काम करना है. हमारे गृहमंत्री चाहते हैं कि हम सारी भाषाओं को सम्मान नहीं देंगे , जब तक यह विश्व चेतना के केंद्र में स्थापित नहीं होगी. तब तक इस प्रण को पूरा करना संभव नहीं है. उसका प्रदर्शन हमने जी-20 सम्मेलन में देखा है. जब प्रधानमंत्री अपना भाषण हिंदी में दे रहे थे वहां विभिन्न भाषाओं में ट्रांसलेशन करने की व्यवस्था थी लेकिन उस मीटिंग में भाग लेने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति सहित कई लोग ऐसे थे जो प्रधानमंत्री के हिंदी के भाषण को भी बहुत गौर से सुन रहे थे. स्वतंत्रता के बाद जो हमारे अंदर हीनग्रंथि डाल दी गई थी वह इस जी-20 सम्मेलन में दूर हुई है. जब लोगों ने हिंदी को सराहा. हमने उस हीन ग्रंथि को ऑपरेशन करके बाहर करने का कार्य किया है. जी-20 के कई लोगों ने हिंदी के कुछ शब्दों में प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया है.

केंद्रीय राज्यमंत्री भारती पवार ने कहा कि मातृभाषा की उन्नति के बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है.तथा अपने भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा का दूर करना के लिए भष्षा महत्वपूर्ण है. आशा यही है कि अपनी भाषा में जो काम करने का आनंद है. वो किसी अन्य भाषा में काम करने में नहीं हो सकता है.मेरे लिए आज यह खुशी की बात यह है कि आज यहां हिंदी दिवस अखिल भारतीय स्तर पर मनाया जा रहा है. मिश्रा ने जिस तरह से मुझे आमंत्रित किया तो मुझे तो आना ही था. मैं सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देती हूं और सभी विभागों से आशा करती हूं कि आगे भी इसी तरह से अपना कामकाज हिंदी में करने को प्राथमिकता दें. हमारी भाषा और गौरवशाली परंपरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है. हम सभी जानते हैं कि हिंदी भाषा ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में लोगों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया है. हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने हिंदी के माध्यम से लोगों को एकजुट करने का प्रयास किया है. रविंद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद आदि महापुरुषों ने हिंदी को भारत की एकमात्र संपर्क भाषा माना. यही हमारे आजादी के आंदोलन का एक हथियार बना. आज हमारी हिंदी विदेशों में भी गूंजती है. युवाओं में भी यह नमस्ते शब्द इतना प्रचलित हो गया है कि हैरानी होती है. आज युवा पीढ़ी जिस तरह से हिंदी का अपना रही है. उसे देखकर लगता है कि उनका रुझान हिंदी की ओर बढ़ रहा है. कार्यक्र्रम के दौरान राजभाषा हिंदी में उत्कृष्ट कार्य करने वाले विभागों को राजभाषा कीर्ति पुरस्कार और राजभाषा गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस दौरान कंठस्थ 2.0 के इंटीग्रेटेड वर्जन को भी लांच किया गया तथा इसके साथ ही हिंदी शब्द सिंधु के नई शब्दावली जिसमें 3 लाख 50 हजार नए शब्द जोड़े गए हैं. उसे भी लांच किया गया.

गृहमंत्री अमित शाह ने वीडियो संदेश के माध्यम से दिया संदेश
कार्यक्रम के प्रारंभ गृहमंत्री अमित शाह ने वीडियो संदेश के माध्यम से उपस्थितजनों को संबोंधित किया और हिंदी दिवस की शुभकामनाएं दीं. उन्होंने कहा कि भारत भाषिक विविधताओं का देश है. भारत की भाषाओं और बोलियो के समुच्चय हिंदी भाषा ने स्वतंत्रता आंदोलन के मुश्किल दिनों में देश को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास किया. हिंदी की इसी प्रवृति के कारण इसे आजादी के बाद भारत की राजभाषा के रुप में अंगीकृत किया है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिंदी को वैश्विक मंचों पर यथोचित सम्मान मिला है. विभिन्न मंत्रालयों में लगभग शत प्रतिशत कार्य हिंदी में हो रहा है. राजभाषा के कार्य को सरल और सहज बनाने के लिए राजभाषा विभाग ने अनुवाद टूल कंठस्थ और समावेश शब्द कोश हिदीं शब्द सिंधु का निर्माण तथा नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों को सशक्त किया है. उन्होंने अंत में सभी उपस्थित जनों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं दीं.