पुणे, 23 सितंबर 2020: नीलम सक्सेना चंद्रा, जानी मानी साहित्यकार, के बत्तीसवे काव्य संग्रह “कई बसंत देखे हैं मैंने” का लोकार्पण जश्न-ए-हिन्द के पेज के माध्यम से ऑनलाइन किया गया| काव्य संग्रह का शीर्षक है “कई बसंत देखे हैं मैंने” एवं यह जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर लिखी हुई पचास कविताओं का संग्रह है| यह संग्रह सप्तरिशी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है व अमेज़न पर उपलब्ध है| इस अवसर पर लोकप्रिय कवि एवं ग़ज़लकार लक्ष्मी शंकर बाजपाई, जानेमाने साहित्यकार ख़ालिद अल्वी, प्रसिद्ध कवि प्रताप सोमवंशी, फिल्म मेकर और टेलीविज़न डायरेक्टर सुशिल भारती, कवि एवं अनुवादक टीकम शेखावत, एवं जानी-मानी शख्सियत डॉ मृदुला टंडन मौजूद थे| लोकार्पण के पश्चात शकील अहमद ने नीलम के द्वारा लिखा एक गीत भी राग-बद्ध करके पेश किया| इस ऑनलाइन कार्यक्रम से बहुत लोग जुड़े| यह नीलम की सत्तावंवी पुस्तक है|

नीलम सक्सेना चंद्रा एक इंजीनियर हैं व पुणे में अपर मंडल रेल प्रबंधक के पद पर कार्यरत  हैं| कविताएँ एवं कहानियाँ लिखना आपका शौक है| आपकी १५०० से अधिक रचनाएँ विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं  में प्रकाशित हो चुकी हैं| बत्तीस काव्य संग्रह  के अलावा आपके चार उपन्यास, एक उपन्यासिका, छह कहानी संग्रह, व तेरह बच्चों की पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं| आपको विभिन्न पुरस्कारों से सुशोभित किया गया है, जैसे अमेरिकन एम्बेसी द्वारा आयोजित काव्य प्रतियोगिता में गुलज़ार जी द्वारा पुरस्कार, रबिन्द्रनाथ टैगोर अंतर्राष्ट्रीय काव्य पुरस्कार २०१४, रेल मंत्रालय द्वारा प्रेमचंद पुरस्कार, चिल्ड्रेन ट्रस्ट द्वारा पुरस्कार, पोएट्री सोसाइटी ऑफ़ इंडिया द्वारा काव्य प्रतियोगिता २०१७ में द्वितीय पुरस्कार, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा सोहनलाल द्विवेदी पुरस्कार, ह्यूमैनिटी अन्तराष्ट्रीय वीमेन एचीवर अवार्ड २०१८, भारत निर्माण लिटरेरी अवार्ड पुरस्कार इत्यादि| इनके द्वारा लिखे गीत ‘मेरे साजन सुन सुन’ को रेडियो सिटी द्वारा फ़्रीडम पुरस्कार इत्यादि|

आपके कार्य को सराहते हुए एक वर्ष में सबसे अधिक पुस्तक प्रकाशन हेतु लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड द्वारा इन्हें मान्यता मिली है| नीलम को फ़ोर्ब्स मैगज़ीन द्वारा २०१४ के देश के अठहत्तर प्रख्यात लेखकों में नामित किया गया है|

बसंत के महीने में जब खूबसूरत से पीले गुल हर तरफ़ खिल उठते हैं, तो ज़हन भी ख़ुशी से झूम उठता है| पर ज़िंदगी में हरदम तो बसंत नहीं रहता है ना? जब बसंत बीत जाता है, तो आफ़ताब के तेज से हम क्या, क़ुदरत भी झुलस उठती है| यूँ तो बारिश भी मन को आशिकाना बना देती है, पर कभी-कभी वो भी बाढ़ साथ लेकर आती है| और फिर, ठंड के मौसम में तो हर तरफ धुंध ही धुंध छा जाती है|

यदि हम अपने ज़हन को ख़ुशी से लबरेज़ कर दें, और उसमें ही बसंत भर दें, तो चाहे बाहर कितनी ही विपरीत परिस्थितियाँ क्यों न हों, मन कभी हार नहीं मानेगा और मुसकुराते हुए गम के हर दरिया को पार कर लेगा| अपने इन्हीं एहसासों के मोतियों को पचास नज़्मों की लड़ियों में पिरोकर, नीलम सक्सेना चंद्रा ने अपने काव्य संग्रह “कई बसंत देखे हैं मैंने” में पेश किया है|
कार्यक्रम की शुरुआत मृदुला टंडन द्वारा सभी ख़ास अतिथिगण एवं नीलम के बारे में जानकारी देकर की| उसके पश्चात इस काव्य संग्रह में से नीलम ने अपनी तीन कविताओं को श्रोताओं के समक्ष नीलम ने प्रस्तुत किया| टीकम शेखावत ने इस काव्य संग्रह में से अपने पसंद की कविताओं का वाचन किया एवं नीलम के ख़ास अंदाज़ के बारे में तारीफ़ की| सुशिल भारती ने कई कविताओं पर काफ़ी विस्तार में विश्लेषण किया| प्रताप सोमवंशी, खालिद अल्वी और लक्ष्मी शंकर बाजपाई ने भी विस्तार पूर्वक कविताओं के विभिन्न पहेलुओं पर प्रकाश डाला| सभी का मत था की अंतर्मन की यात्रा यह नीलम की ज़्यादातर कविताओं में झलकती है| धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम ख़त्म हुआ|