पुणे, 04अप्रैल 2022: पुणे स्थित तीन वैज्ञानिक संस्थान – सीएसआईआर-राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (एनसीएल), राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केंद्र (एनसीसीएस) तथा आघारकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) द्वारा सम्मिलित रूप से संयुक्त राजभाषा वैज्ञानिक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन सीएसआईआर-राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (एनसीएल), पुणे में दिनांक 29 अप्रैल, 2022 को किया गया। इस संगोष्ठी का विषय “महामारी के दौर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों की भूमिका” था। इस मौके पर पदाधिकारियों द्वारा संगोष्ठी की सारांश पुस्तिका का तथा सीएसआईआर-राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला की छ:माही हिन्दी पत्रिका ‘एनसीएल आलोक’ भी विमोचन किया गया। इस संगोष्ठी में सम्पूर्ण भारत के केन्द्रीय संस्थानों से वैज्ञानिक, शोध छात्र तथा प्रशासनिक प्रमुख/हिन्दी अधिकारी उपस्थित थे। उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डीआरडीओ (इसीई, पुणे) के निदेशक (प्रोजेक्ट मानिटरिंग) डॉ. हिमांशु शेखर, एनसीएल के निदेशक डॉ. आशीष लेले, एआरआई के निदेशक डॉ. प्रशांत ढाकेफलकर, एनसीसीएस के निदेशक डॉ. अरविंद साहू उपस्थित थे। उद्घाटन सत्र का संचालन तथा आभार प्रदर्शन एनसीएल की हिन्दी अधिकारी डॉ. (श्रीमती) स्वाति चढ्ढा द्वारा किया गया। संगोष्ठी में कुल 140 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इस संगोष्ठी में तीन वैज्ञानिक सत्र आयेजित किए गए, जिनमें 16 शोध पत्रों की प्रस्तुति वैज्ञानिकों और शोध छात्रों द्वारा दी गई ।
कार्यक्रम के प्रारंभ में एनसीएल के संगोष्ठी संयोजक डॉ. नरेन्द्र कडू ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। उन्होंने सभी को इस कार्यक्रम के उद्देश्य से अवगत कराया। तत्पश्चात एनसीएल के निदेशक डॉ. आशीष लेले ने अपने संबोधन में सभी को बधाई दी और कहा कि इस प्रकार का आयोजन निश्चित रूप से सभी के लिए अत्यंत लाभकारी होगा। इसके द्वारा हम एक दूसरे की कार्यप्रणाली और विचारों से परिचित होते है और संयुक्त रूप से इसी विषय पर नए तरीके से विचार करने का मौका मिलता है। साथ ही हमें वैज्ञानिक शोध के नए-नए आयामों को जानने का एवं उन पर विचार विमर्श करने का मौका मिलता है। तकनीक और विज्ञान से क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग अत्यंत कम होता है । विश्व भाषा के रूप में विकसित होने के लिए हिंदी भाषा में विज्ञान सम्बन्धी साहित्य होना जरुरी है। अधिकांश वैज्ञानिक शोधकार्य अंग्रेजी भाषा में ही होने के कारण जन साधारण तक उसकी जानकारी नहीं पहुँच पाती है, इस कार्यक्रम के माध्यम से हम वैज्ञानिक कार्यों को राजभाषा हिंदी में करने का संदेश दे रहे है।
एनसीसीएस के निदेशक डॉ. अरविन्द साहू ने अपने अभिभाषण में महामारी के दौरान वैज्ञानिकों के बढे़ हुए महत्व को रेखांकित किया । महामारी के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों ने एक जुट होकर निस्वार्थ रूप से सभी ने अपना-अपना योगदान दिया। उन्होंने संस्थानों में किए जा रहे अनुसंधान के प्रचार और प्रसार के लिए सही जानकारी साझा करने के लिए सभी को प्रोत्साहित किया।
एआरआई के निदेशक डॉ. प्रशांत ढाकेफलकर ने वैज्ञानिक जानकारी का प्रसार हिंदी और क्षेत्रीय भाषा में करने के लिए अपनी शैली में सभी को प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि एआरआई में किसानों के लिए विकसित की गई धान की नई प्रजातियों के बीज लेने के लिए बहुतांश किसानों ने हिंदी भाषा में ही संपर्क किया।
इस संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में डीआरडीओ (इसीई, पुणे) के निदेशक (प्रोजेक्ट मानिटरिंग) डॉ. हिमांशु शेखर उपस्थित थे । उन्होंने अपने उद्बोधन में बताया कि महामारी के दौर में विज्ञान और तकनीकी का विकास सुसंगत रूप से हुआ और उसकी दिशा में परिवर्तन हुआ है । कोरोना एक सामाजिक बिमारी है और इसमें हर व्यक्ति को ठोस कदम लेना चाहिए तभी उसका इलाज़ संभव हो सकता है । महामारी में वैज्ञानिक संस्थानों ने बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने बताया कि अच्छे शोधकर्ता को अपना शोध अपनी क्षेत्रीय भाषा में भी छापने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, ताकि क्षेत्रीय लोग भी उस शोध से लाभान्वित हो और समाज का कोई भी व्यक्ति उससे वंचित न रहे । हमें समाज को साथ में लेकर चलना होगा । समाज के सुधार के लिए जो भी काम आप कर रहे है, उस काम की जानकारी समाज तक पहुँचाने की जिम्मेदारी भी आप की है।
इस सम्मेलन में निम्नांकित विषयों पर चर्चा की गई।
- कोविड से संबंधित विभिन्न निदान/अनुसंधान एवं उपचारात्मक एवं बचाव की पद्धतियां
- कोविड के दौरान पर्यावरण संरक्षण
- अस्पतालों/ केयर सेंटर में प्रयुक्त विभिन्न प्रौद्योगिकियां/ तकनीकें
- कोविड के दौरान अन्य रोगों का प्रभाव
तकनीकी सत्रों का संचालन श्री रामेश्वर नेमा और श्रीमती मंजुषा तिवारी ने किया । तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता तीनों संस्थाओं के वरिष्ठ वैज्ञानिकों – डॉ. राजेश गोन्नाड़े, डॉ. गिरधारी लाल, डॉ. हर्ष वर्धन पोळ, डॉ. ज्यूतिका राजवाड़े, डॉ. संजय सिंह, डॉ. परेश ढेपे द्वारा की गई। इस संगोष्ठी के आयोजन में डॉ. नरेंद्र कडू, डॉ. गिरधारी लाल, डॉ. एस. के. सिंह, श्री गुरूदत्त वाघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संगोष्ठी के समन्वयक के रूप में डॉ. (श्रीमती) स्वाति चड्ढा, श्रीमती स्मिता खडकीकर तथा श्रीमती मंजुषा तिवारी ने कार्य किया।