चंद्रपुर, 28 फरवरी 2022: नागपुर से करीब 150 किलोमीटर दूर चंद्रपुर में मौजूद 2920 मेगावॉट कोयला से संचालित पॉवर स्टेशन इकाइयों से होने वाले वायु प्रदूषण का चंद्रपुर और नागपुर के निवासियों के स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम हो रहा है।
हाल ही में द सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरइए) की ओर से वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर दुष्परिणाम पर किये गए एक अध्ययन “हेल्थ इम्पैटस ऑफ़ चंद्रपुर कोल-बेस्ड पावर प्लांट, महाराष्ट्र” के अंदाज के अनुसार चंद्रपुर सुपर थर्मल पावर स्टेशन (सीएसटीपीएस) के संचालन से होने वाले वायु प्रदूषण की वजह से 2020 के दौरान चंद्रपुर में 85, नागपुर में 62, यवतमाल में 45, मुंबई में 30, वहीं 29 प्रत्येक पुणे और नांदेड़ असामयिक मौतें हुईं। इसके साथ मध्य भारत के अन्य शहरों में भी इसका बेहद बुरा प्रभाव हुआ।
सीआरइए का अध्ययन एक स्वतंत्र आकलन (एनेक्सचर I देखें ) है, जो जनवरी 2022 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानि एनजीटी (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) के उस आदेश की पृष्ठभूमि में है जिसमें सीएसटीपीएस द्वारा वायु प्रदूषण और अन्य नियमों के उल्लंघन की बात कही गयी है। कई अन्य निर्देशों में एनजीटी ने इस पॉवर स्टेशन के प्रदूषण से सेहत पर होने वाले असर के आकलन के लिए अध्ययन का आदेश दिया था।
सीआरइए में विश्लेषक और रिपोर्ट के लेखकों में से एक सुनील दहिया ने कहा, “महाराष्ट्र स्टेट पावर जनरेशन कंपनी (महाजेनको) जैसी ऊर्जा कंपनियों की लापरवाही की वजह से पूरी आबादी के स्वास्थ्य के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। प्रदूषण को कम करने और नियमों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाई की जानी चाहिए।”
रिपोर्ट के निष्कर्ष के अनुसार सीएसटीपीएस से होने वाले व्यापक हवा के प्रदूषण के प्रभावों में सांस से संबंधी बीमारियां शामिल हैं जिसकी वजह से 2020 में चंद्रपुर में 34,000 लोगों ने सिक लीव (अस्वस्थता अवकाश) ली जबकि नागपुर में 30,000 लोग अनुपस्थित थे। दहिया ने कहा, “यह दर्शाता है कि कैसे थर्मल पावर प्लांट के उत्सर्जन ने इन दोनों शहरों में लोगों की कार्यक्षमता को प्रभावित किया है।”
कोयले से चलने वाले पावर प्लांट सिर्फ आसपास रहने वालों को ही नहीं प्रभावित करते बल्कि तक इनका असर होता है, और प्रदूषकों की सघनता (मात्रा बढ़ना) सभी को विशेषतौर पर संवेदनशील आबादी जैसे बच्चे, बूढ़े और गर्भवती महिलाओं को संकट की ओर धकेल रहा है।
इस अध्ययन में, सीएसटीपीएस से होने वाले वायु प्रदूषण के दुष्परिणाम सैकड़ों किलोमीटर दूर नांदेड़, पुणे और मुंबई जैसे शहरों में भी दर्ज किये गए। अध्ययन के अनुसार, सीएसटीपीएस की वजह से मध्य भारत में अकेले 2020 में आठ लाख से अधिक सिक लीव दिन, तकरीबन 1900 अस्थमा के आपातकालीन मामले जिसमें से 800 बच्चे, कम से कम 1300 लोगों की मौत और 1800 अपरिपक्व (प्रीमचुर) जन्म शामिल है। यह सब घटनाएं 78% पीएलएफ (प्लांट लोड फैक्टर जिसका अर्थ है प्लांट से किसी निश्चित समय में निर्मित की जा सकने वाली अधिकतम शक्ति के अनुपात में प्लांट द्वारा निर्मित औसत शक्ति) पर हुई हैं।
दहिया का कहना है कि सीएसटीपीएस देश की उन सैकड़ों थर्मल पावर स्टेशन इकाईयों में से है जो निर्धारित नियमों का पालन किये बिना जहरीले प्रदूषक उगल रहे हैं। उन्होंने कहा, “पूरे देश में सिर्फ 2 फीसदी कोयला आधारित पावर प्लांट केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2015 में निर्धारित नियमों का पालन करे रहे हैं। प्रदूषण से संबंधित नियमों के पालन के मामले में महाजेनको सबसे लापरवाह कंपनियों में से एक है।”
सीआरइए के विश्लेषण में आगे पाया गया है कि फ्लू गैस डीसल्फराइज़ेशन (एफजीडी यानि वह तकनीक जिसकी मदद से पावर प्लांट्स से निकलने वाले प्रदूषकों को कम किया जाता है) की सहायता से एसओ2 (SO2) के उत्सर्जन को प्लांट के इकाई पांच से नौ (एनेक्सचर-II देखें) में 92% तक कम किया जा सकता है। दहिया ने कहा, “इस तकनीक ने हर साल (2020 में) 1650 करोड़ रुपये से अधिक के आर्थिक नुकसान (लोक-कल्याण नुकसान का खर्च और स्वास्थ्य बोझ की वजह से) से भी बचा लिया होता।
सीएसटीपीएस का संचालन भारी प्रदूषकों के उत्सर्जन का कारण है: साल 2020 में 4724 टन पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) यानि कणाकार तत्व, 1,03,010 टन सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), 28,417 टन नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और 1,322 किलोग्राम मर्क्युरी (पारा) का उत्सर्जन हुआ।
दहिया ने कहा, “रिपोर्ट में सीएसटीपीएस को पुरानी इकाईयों (3 और 4) को बंद करने और अन्य चालू इकाईयों में SO2 उत्सर्जन को रोकने के लिए एफजीडी लगाने की सिफारिश की गयी है। इसकी मदद से इलाके के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर होने प्रभावों को टाला जा सकता है।”
चंद्रपुर मामले में एनजीटी में याचिका दायर करने वाले मधुसूदन रूंगटा ने कहा, “सीएसटीपीएस प्रदूषण का बड़ा स्रोत है जिसकी वजह से इलाके के निवासियों के स्वास्थ्य और जीवन पर बेहद गंभीर दुष्परिणाम हो रहे हैं। केंद्र की पुरानी इकाईयों के प्रदूषण अब कम नहीं किये जा सकते लेकिन नयी इकाईओं में एफजीडी लगाना क्षेत्र की हवा की गुणवत्ता में व्यापक सुधार करेगा। इसकी सहायता से सिक लीव दिनों, मौतों की रोकथाम और बीमारियों को कम किया जा सकता है।”
चंद्रपुर क्लीन एयर एक्शन ग्रुप (सीसीएएजी) के सदस्य प्रोफेसर योगेश दूधपचारे का कहना है कि महाराष्ट्र के सबसे पुराने और बड़ा कोयला संचालित पावर प्लांट होने के बावजूद, सीएसटीपीएस की सातों इकाईयां उत्सर्जन मानकों का अनुपालन नहीं करती हैं।
उन्होंने कहा, “नियमों के उल्लंघन के बावजूद, सीएसटीपीएस के खिलाफ महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से न ही कोई ठोस कार्यवाई हुई और न ही उन्होंने उत्सर्जन मानकों को लागू करने की सख्ती दिखाई। ज्यादातर बिजली का उपयोग जिले के बाहर हो रहा है फिर भी चंद्रपुर के लोग अपने स्वास्थ्य की कीमत चुका कर राज्य की बिजली की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं।” दूधपचारे का कहना है कि लोगों ने इकाई 3 और 4 को बंद करने और सीएसटीपीएस द्वारा उत्सर्जन मानकों को लागू करने की मांग की है।
बाल चिकित्सक और चंद्रपुर बचाव संघर्ष समिती के अध्यक्ष डॉ गोपाल मुंधड़ा ने शहर और जिले में औद्योगिक प्रदूषण की वजह सांस से जुड़ी बीमारियों के व्यापक रूप से बढ़ने के खिलाफ आवाज उठाई है। उन्होंने कहा, “सांस की बीमारियों के साथ एलर्जी और अन्य परेशानियों के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। हमारी जानकारी के मुताबिक चंद्रपुर शहर मेंं त्वचा की एलर्जी और सांस की समस्याओं को ठीक करने वाली दवाओं की सर्वाधिक बिक्री हुई हैं। एनजीटी ने पहले ही स्वास्थ्य की जांच करने के लिए समिति बनाने की बात कही है और हम सीआरईए की यह रिपोर्ट भी उनके सामने पेश करेंगे। चंद्रपुर के लोगों ने बहुत तकलीफों का सामना किया है। अब उन्हें न्याय चाहिए।”