पटना, १०/०४/२०२३: बिहार में सासाराम और बिहारशरीफ और पश्चिम बंगाल में हुगली और हावड़ा में रामनवमी समारोह के दौरान जमकर हिंसा हुई। दोनों की राज्यों में देश की धर्मनिरपेक्ष साख दांव है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार अपनी जिम्मेदारी और पद की गरिमा को भूलकर तुष्टिकरण की सियासत में जुटे हैं। ये दुर्भाग्य है कि देश के एक हिस्से पश्चिम बंगाल में रामनवमी की शोभायात्रा को शांति से नहीं निकलने दिया जाता है और सीएम ममता बनर्जी कोई ठोस कार्रवाई करने की बजाय हिंदुओं की आवाजाही को ही प्रतिबंधित करने में लगी हैं। वो कहती हैं कि हिंदू इस इलाके में न जाएं, उस इलाके में न जाएं। भला, कोई मुख्यमंत्री समाज और क्षेत्र को बांटने की बात कैसे कर सकता है?

दोनों ही राज्यों में धर्म और समाज का मामला अपने दायरे से निकलकर बड़ा सियासी हो गया है। प. बंगाल के हावड़ा में राम नवमी पर शोभा यात्रा निकली। कुछ देर में ही सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया। इस बार बार की हिंसा का रूप पिछली बार से भयानक था। बिहार में भी कुछ ऐसा ही है। बंगाल और बिहार के सीएम अपने-अपने राज्य की जनता के साथ पक्षपात करने का काम करते हैं जो कि अपने आप में सवाल खड़े करते हैं। इन घटनाओं के पीछे क्या एक वर्ग है या फिर तुष्टिकरण की सियासत, जो उनको और हवा देने का काम करती है। क्या वोटबैंक की राजनीति में अशांति फैलाने का काम इस प्रकार से भी किया जाता है, ये अपने आप में बड़ा सवाल खड़ा करता है। बिहार के दो जिले सासाराम और नालंदा में रामनवमी के अवसर पर निकाली जा रही शोभायात्रा के दौरान पथराव तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई है। बिहार भी बंगाल के रास्ते पर चल रहा है। बिहार में सत्ता-संरक्षण में तुष्टिकरण के लिए हिंसा की आग भड़कायी जा रही है। पश्चिम बंगाल के हुगली के रिषडा में रेलवे स्टेशन के पास कट्टरपंथियों ने बम फेंके। इसकी वजह से रेल सेवा बाधित हुई। पूर्व नियोजित साजिश के तहत रामनवमी के पावन मौके पर पूरे बिहार को अशांत करने की साजिश रची गई, जिसकी आग अभी धधक रही है। दुख की बात ये कि इन दोनों राज्यो में पीड़ितों के साथ खड़े होने की बजाय सत्ताधारी दल और सरकार वोट बैंक की राजनीति कर रही है।

बिहार और बंगाल में सियासी तुष्टिकरण को लेकर ये सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ताजिया पर पत्थर क्यों नहीं चलते? सिर्फ हिंदुओं की शोभा यात्रा पर पत्थर और तलवार क्यों चलते हैं? आखिर बुद्ध का बिहार बम और बंटवारे में क्यों उलझ गया है। आखिर टैगोर का बंगाल अशांति की आग में क्यों झुलस रहा है?

जब भी किसी राज्य में हिंसा होती है तो इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार पर ही होती है, क्योंकि कानून व्यवस्था की स्थिति के लिए सीधे तौर पर राज्य सरकारी ही जिम्मेदार होती है। इस तरह की घटनाओं के बाद दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री से लेकर अधिकारियों तक की सुस्ती को साफ जाहिर करती है। चाहे पश्चिम बंगाल सरकार हो या बिहार सरकार, दोनों को जवाब देना होगा कि आखिर वो कर क्या रही थी? बिहार और बंगाल के मुकाबले यूपी में मुसलमानों की संख्या कई गुणा ज्यादा होने के बावजूद आखिर यहां कोई दंगा क्यों नहीं हो रहा है? दरअसल, यूपी की योगी आदित्‍यनाथ सरकार चौबीसों घंटे और सालों भर पूरे ऐक्‍शन में रहती है। सरकार बिना किसी पक्षपात के दंगाइयों और अपराधियों पर एक्शन लेती है। इसी का नतीजा है कि प्रदेश में एक ओर जहां कानून का शिकंजा माफिया और अपराधियों पर कसता चला गया, वहीं दुर्दांत बदमाशों का एनकाउंटर के जरिये सफाया भी हुआ। वर्ष 2022 में 62 माफियाओं की 26 सौ करोड़ से अधिक की संपत्ति को जब्त और ध्वस्त किया गया। इसी तरह खौफ का पर्याय बने करीब 8 अपराधियों को एनकाउंटर में मार गिराया गया। वहीं अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिये पुलिसिया कार्रवाई करने के साथ ही कोर्ट में असरदार और प्रभावी पैरवी कर उन्हें सजा भी दिलवाई जा रही है। इससे यूपी में कानून का राज स्थापित हुआ है और दंगाइयों पर नकेल कसी जा सकी है। इसके उलट बंगाल और बिहार में दंगाइयों को सरकारी प्रश्रय दिया जा रहा है, जिससे उनका मनोबल बढ़ता है और इसका दंश आम जनता झेलती है।