पुणे, १८/१०/२०२४: भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) पुणे और सीएसआईआर-राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (एनसीएल) पुणे के अनुसंधानकर्ताओं ने दिखाया है कि अनाकार ठोस पदार्थों का स्थूल विरूपण, पदार्थ के भीतर संरचनात्मक दोषों द्वारा नियंत्रित होता है। आईआईएसईआर, पुणे के डॉ. विजयकुमार चिक्‍काडी और सीएसआईआर-एनसीएल, पुणे की डॉ. सारिका भट्टाचार्य के नेतृत्व में यह संयुक्‍त प्रयास, कोलाइडल ग्‍लास – अनाकार ठोसों के लिए मॉडल प्रणाली – पर प्रायोगिक अध्ययन को संरचनात्मक क्रम पैरामीटर पर आधारित सैद्धांतिक ढाँचे के साथ जोड़ता है। प्रोसीडिंग्‍स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज यूएसए में प्रकाशित, ये निष्कर्ष सामग्री विज्ञान और संघनित पदार्थ भौतिकी में एक लम्बे समय से चले आ रहे प्रश्‍न का उत्तर देते हैं।

जब बाहरी दबाव डाला जाता है तो सभी पदार्थ विकृत हो जाते हैं। वर्ष 1934 में, जी. आई. टेलर, एम. पोलानी, और ई. ओरोवन ने स्‍वतंत्र रूप से समझाया कि मैक्रोस्‍कोपिक विरूपण सामग्री के भीतर दोषों की गतिशीलता से उत्‍पन्‍न होता है। क्रिस्टलीय ठोसों में, जाली विकृतियों के कारण इन दोषों की पहचान करना अपेक्षाकृत सरल है। हालाँकि, अनाकार ठोसों में, दीर्घ-सीमा क्रम का अभाव दोष-जैसे क्षेत्रों का पता लगाना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण बना देता है। यद्यपि अव्यवस्थित ठोसों में नरम, दोष-जैसे क्षेत्रों की पहचान करने के लिए कई तरीके प्रस्तावित किए गए हैं, लेकिन प्रायोगिक प्रणालियों में प्रत्यक्ष अवलोकन कठिन रहा है।

इस समस्या के समाधान के लिए, आईआईएसईआर पुणे के रतिमानसी साहू और डॉ. विजयकुमार चिक्काडी ने सघन कोलाइडल निलंबन का प्रयोग करते हुए प्रयोग किए, जो अनाकार ठोसों के मॉडल के रूप में काम करते हैं। उन्नत माइक्रोस्कोपी तकनीकों का उपयोग करके, समय के साथ तीन आयामों में लगभग 100,000 व्यक्‍तिगत कोलाइडल कणों की गति पर नज़र रखकर, उन्होंने सूक्ष्म जानकारी तक अभूतपूर्व पहुँच प्राप्त की, जिसे परमाणु प्रणालियों में प्राप्त करना कठिन है।
इन अध्ययनों में सीएसआईआर-एनसीएल, पुणे मोहित शर्मा और डॉ. सारिका भट्टाचार्य द्वारा विकसित संरचनात्मक क्रम पैरामीटर का उपयोग किया गया, जिससे अनाकार निलंबन में नरम और कठोर क्षेत्रों की मात्रा निर्धारित की गई, जिससे संरचनात्मक दोषों की पहचान हुई। डॉ. सारिका भट्टाचार्य ने कहा, “इस ऑर्डर पैरामीटर का एक प्रमुख लाभ, जो विस्तृत सूक्ष्म सिद्धांत से विकसित किया गया है, प्रयोगात्मक सेटिंग्स में इसकी व्यावहारिक प्रयोज्यता है। यह इसे अन्य सैद्धांतिक मात्राओं की तुलना में अधिक उपयोगी बनाता है।”

पहली बार, टीम ने प्रयोगात्मक रूप से प्रदर्शित किया कि कोलाइडल ग्लासों में मैक्रोस्कोपिक विरूपण स्थानीयकृत विकृतियों से उत्पन्न होता है, जो बाह्य तनाव के अधीन होने पर संरचनात्मक दोष वाले क्षेत्रों में अधिमानतः होता है।

डॉ. विजयकुमार चिक्‍काडी ने इस कार्य की भविष्य की संभावनाओं पर बोलते हुए कहा, “इस सफलता से हमारी समझ में काफी गहराई आई है कि दोष किस प्रकार अव्यवस्थित ठोसों के यांत्रिक गुणों को प्रभावित करते हैं। यह संरचनात्मक पहलुओं पर आधारित उन्नत रियोलॉजिकल मॉडल विकसित करने का मार्ग भी प्रशस्त करता है, जो विभिन्न प्रकार की सामग्रियों पर लागू होते हैं, जिनमें दानेदार सामग्री और इमल्शन जैसे नरम पदार्थ, साथ ही धातु के ग्लास भी शामिल हैं।”

यह कार्य प्रोसीडिंग्‍स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज, यू.एस.ए. प्रकाशित हुआ है और इसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग – विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड से अनुसंधान अनुदान सहायता प्राप्त हुई है।

उद्धरण
रतिमानसी साहू, मोहित शर्मा, पीटर शाल, सारिका मैत्रा भट्टाचार्य, और विजयकुमार चिक्‍काडी (2024). स्‍ट्रक्‍चरल ऑरिजि‍न ऑफ रिलेक्‍सेशन इन डेन्‍स कोलॉइडल सस्‍पेन्‍शन्‍स। प्रोसीडिंग्‍स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज, यू.एस.ए. 121 (42) e2405515121.
https://doi.org/10.1073/pnas.2405515121